भारतीय सांस्कृतिक विद्या

गर्भ कला

भारतीय संस्कृति में विद्या को सर्वोच्च पद प्राप्त है। विद्या दान को सर्वश्रेष्ठ दान का पद भी दिया गया है।

विद्या प्रदान एक कला है जिसे उन्नत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, एवं ज्ञान प्रसार के लिए उच्च कोटी के ज्ञानदाता अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्ञानदाताओं की श्रेणी में एक शिशु के अभिभावक प्रथम गुरु बनते हैं एवं उनका दायित्व माता के गर्भधारण से प्रारंभ होता है।

याध्यापि अधिकांश अभिभावक शिशु को जन्मोत्तर ही शिक्षा प्रदान करते हैं, किन्तु यदि हम महाभारत के अभिमन्यु जन्म संवाद को पढ़ें एवं समझें, तो शिशु को गर्भ कला द्वारा भी शिक्षित किया जा सकता है। जिस प्रकार अभिमन्यु के जन्म से कुछ क्षण पहले ही अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने के कला का व्याख्यान कर रहे थे, जिसे अभिमन्यु ने गर्भ में ही सुना एवं सीखा, उसी प्रकार हम भी अपने शिशुओं को धर्म ज्ञान गर्भ कला से ही सिख सकते हैं।

कृपया भारत के इतिहास में भारतीय परंपराओं पर ध्यान केंद्रित कीजिए, आपको गर्भवती महिला द्वारा धर्म ग्रंथों का अध्ययन, पाक कलाओं का अध्ययन, रणनीति, राजनीति इत्यादि का अध्ययन का सम्पूर्ण उल्लेख मिलेगा। यह माता द्वारा अपने गर्भ में पल रहे शिशु को गर्भ कला द्वारा सदचरित, सद्काल एवं अन्य ज्ञानवर्धक शिक्षा देने का ही एक प्रारूप है।

सनातन संस्कृति की यह कला वर्तमान में विलुप्त हो रही है क्योंकि दूरदर्शन (tv), दूरध्वनी यंत्र (Mobile) एवं अन्य यंत्रों (Gadgets) में लीन अभिभावक स्वयं ही नहीं जानते कि वे अपने शिशु को धर्म ज्ञान नहीं अल्प ज्ञान दे रहे हैं एवं जो बुद्धि विकास गर्भ से प्रारंभ होना चाहिए उससे वे शिशु को वंचित कर रहे हैं। टीवी अथवा मोबाईल भी गर्भ कला द्वारा ज्ञान दान में सहायक हो सकते हैं, किन्तु उनका सदुपयोग करना अभिभावकों के लिए अत्यंत आवश्यक है। मेरी पत्नी जब गर्भ के सातवें महीने में थी, तब से हमने शिशु को ॐ एवं गायत्री मंत्र का जप सुनाया, मैं स्वयं अपनिपत्नी के समीप बैठ शिशु से बात करता एवं उसे पंचतंत्र की कहानियाँ, गीत अध्याय, दुर्गा चालीसा, गायत्री चालीसा इत्यादि का पाठ कर कर सुनता। आज जब मैं जब उसे उन्ही पाठ को दोहराते हुए सुनता हूँ, तो मुझे अत्यंत गर्व होता है। आज के परिदृश्य में अपने शिशु की सनातन संस्कृति एवं धर्म के प्रति निष्ठा देख कर गर्भ कला द्वारा उसे दी गई शिक्षा पद्धति पर मेरा विश्वास दृढ़ हो उठता है.

मैं अत्याधुनिक गैजेट्स का विरोधी नहीं हूँ, मेरे घर में भी सर्वत्र इन गैजेट्स का एक जाल है, किन्तु उनपर प्रतिदिन प्रातः भगवान कि स्तुति से हम दिन का प्रारभ करते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top